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भावँरी देवी का भंवर मैं जाना ही उचित था

With Malice To None
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क्या मुझे भंवरी देवी की मौत का दुःख है ?
बिलकुल नहीं !
भावँरी देवियों का अंत भंवर मैं ही होना उचित है .उनका समुद्र की अनंत गहराइयों मैं खो जाना ही समाज के लिए उपयुक्त है .
जिस प्रकार दहेज लेना व देना गलत हैं इसी प्रकार पुरुष को शारीरिक प्रलोभन देना भी गलत है . उस मैं फंसने पर वह तो प्रतारित होता ही है परन्तु आज नारी के प्रति अत्यधिक संवेदना हमें यह सच कहने से रोकती है की पैसे की तरह देह का प्रोलोभन देना भी गलत है .
एक बार लखनऊ के एक कवी सम्मलेन मैं कवी उर्मिलेश ने बड़े सहस का परिचय देते हुए एक कविता पढ़ी थी की नैना देवी के लिए हर कॉलोनी मैं तंदूर होना चाहिए .
उसके हत्यारे को सजा मिली ठीक था क्योंकि हत्या करना एक संगीन जुर्म है . किन्तु नैना देवियों को भी जीने का अधिकार नहीं है . भंवरी व नैना देवियों ने अपने शारीर की दूकान बना ली थी . यह एक जाल था जिसमें कोई न कोई फँस ही जाता था.
येही किस्सा बलात्कार सम्बन्धी बयानों का है . यह कहना की औरतें शालीन पहनों एक अपराध बनता जा रहा है .
वेस्ट मैं slut walk निकलने वाली औरतें भूल जाती हैं की सुरक्षा एक प्राकृतिक अधिकार नहीं है . उसे समाज ने बनाया है तो उनकी भी समाज के प्रति कोई जिम्मेवारी है .
नारी की उछ्रिन्कालता उसे पीड़ित अवश्य करेगी . अपनी सुरक्षा उसकी जिम्मेवारी भी है.

इसी प्रकार उसके नारी के देवी के समान पूजने के लिए भंवरी देवियों का भंवर मैं जाना आवश्यक है .
किन्तु कानून को अपने हाथ मैं लेना गलत है.
हमें अब नारी को देवी मान के कानून नहीं बनाने चाहिए .
कानूनों को भंवरी ओर नैना देवियों के लिए भी बनाने चाहिए . अथवा पुरुष को भी इस जिम्मेवारी से मुक्त कर देना चाहिए. क्या हुआ यदि एन दी तिवारी ने किसी औरत के साथ एक रात बिता ली ?
परन्तु हम अभी इतने उन्मुक्त नहीं हुए हैं की इसे ठीक करार दे सकें .
तो फिर भंवरी देवियों के लिए आंसू बहाने के बजाय भवर बनाईये जिसमें उसके सरीखी सब डूब सकें .

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