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यौन उत्पीडन : कुंठा , दुराचरण या कर्त्तव्य हीन अधिकार

With Malice To None
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मैं एक सवाल पूछता हूँ . क्या सीटी बजाना गुनाह है . मैं मुंह फूला के हवा दबा कर छोडूं तो सीटी बज जायेगी . इससे किसी का क्या बिगडेगा ?

तो ऐसा किसी को नुक्सान न करने वाली सीटी बजना अपराध तो नहीं हो सकता ?
पर येही सीटी कोई नवयुवक किसी अर्ध नग्न आधुनिका को देख के बजा दे तो अपराध है .
क्यों ?
क्योंकि वो अर्ध नग्न आधुनिकता के अधिकार का उल्लंघन है ?
किस अधिकार का ? किसके दिए अधिकार का ?
कोई अधिकार प्राकृतिक नहीं है
जीने का अधिकार भी प्राकृतिक नहीं है .
जीने के लिए प्रकृति कर्म की आवश्यकता मानती है . भोजन का प्रबंध करना आपका कर्त्तव्य है . जीवन एक अधिकार नहीं बल्कि एक उम्र भर चलने वाली शाश्वत लड़ाई है .

इसी प्रकार सुरक्षा एक अधिकार नहीं है . यह कर्तव्य पालन से मिलती है . सुरक्षित रहने के लिए घर बनाइये , बाड़ लगाइए , ताला लगाइए तब सुरक्षा मिलती है .
प्रकृति ने जीवन को निर्बाध चलने के लिए हर जानवरों मैं और इंसानों मैं पुरुष को नारी के प्रति आकर्षण , शक्ति व सेक्स की इच्छा दी है . यह कुण्ठा नहीं है स्वाभाविक है .इसका दमन अस्वाभिक है.यह इच्छा ही नारी को सदियों से एक स्वाभिमान व सुरक्षित जीवन प्रदान कर रही है . जब नारी दस पन्द्रह बार बच्चे पैदा करती थी तो भी पुरुष उसके लिए भोजन व सुरक्षा की व्यवस्था करता था . नारी शिशु के लिए भोजन व सुरक्षा की व्यवस्था करती थी .यदि भारत मैं सात जनम तक साथ निभाने की शपथ थी तो उसके पीछे सबके कर्त्तव्य निर्धारित थे .

यह आधुनिकाओं का कर्तव्य हीन सुरक्षा के अधिकार की कल्पना अप्राकृतिक है . यदि वह चाहती हैं की पुरुष पर सीटी न बजाने की रोक लगे तो उन्हें स्वयं भी पुरुष को उत्तेजित करने पर रोक लगानी होगी .
अथवा दोनों को स्वछंदता दें एक को नहीं .
यौन प्रक्रियाओं को अपराध की श्रेणी से निकाल दिया जाय .कोई यौन कर्म अपराध न रहे .
नारी भी स्वतत्र पुरुष भी स्वतंत्र .

स्वतंत्रता सिर्फ एक को नहीं दी सकती .

एक अर्धनग्न नारी को सड़क पर सीटियों से स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है .

समाज उसको यह अधिकार शालीन आचरण पर ही दे सकता है .

इसलिए नारी को शालीनता मैं रहने का परामर्श उचित है .

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