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तुलसी की पंक्तियों को अब दुबारा लिखने की जरूरत है .समुद्र पूजा के समय लक्ष्मण ने कहा था की समरथ के नहीं दोष गोसाईं .
अब तो स्थिति विपरीत है . अब
समरथ के सब दोष गोसाईं कहना ज्यादा उपयुक्त है .
यदि साइकिल पदाति से टकरा जाये तो आँखे हैं की बटन सुनो . यदि कार स्कूटर से टकरा जाये तो कार वाले की पिटाई हो जाती है . यदि ट्रक और मोटर सयकिल मैं टक्कर हो जाये तो ट्रक की गलती है . यदि आपका ड्राईवर एक्सीडेंट कर दे तो आप पर मुकद्दमा चलेगा .
इसी मानसिकता का शिकार है वर्तमान पुरुष विशेषता भारत मैं . इस समय उसके हजारों मा बाप जेल मैं साढ़ रहे हैं क्योंकि हमने एक विषाक्त कानून बना दिया जिससे मात्र इलज़ाम मात्र से पुरुष दहेज का दोषी है .चाहे लड़की के माता पिता अपनी हैसियत से ऊँचा वर क्यों न चाहें अपनी लाडली को सुखी जीवन देने के लिए .ऐसे कानून रोज बढ़ रहे हैं .
चाहे बिहारी मजदूर उम्र भर पिसता रहे घर पैसा भेजने के लिए पर वह किसी सहानभूति का हकदार नहीं है .
हर समय परिवार के लिए समर्पित ताना देने वाली नारी यह भूल जाती है की अधिकाँश घरों मैं पहले बच्चों का व फिर पत्नी के कपड़ों पर ज्यादा खर्च होता है. वह तो अकेला जलेबी भी नहीं खा पाता .पुरुष तो बस किराये से ज्यादा कुछ नहीं पाता .पर ताने सिर्फ उसे सहने पड़ते हैं .
इसका बहूत खराब असर पड़ रहा है.
वैज्ञानिक तौर पर यह सिद्ध हो चूका है की पुरुष मैं शुक्राणुओं की गिनती घाट रही है. पिछले पचास साल मैं यह २० प्रतिशत घाट चुकी है . जानने के लिए पढ़ें
http://cqs.com/esperm.htm
इस स्थिति की जिम्मेवार हमारी घटती हुयी पुरुषोचित गतिविधियों के लिए सुविधाएँ हैं .इसके अलावा हमारी पुरुष पर लगाये जा रहे प्रतिबन्ध उसके पौरुष को खतम करते जा रहे हैं .
यदि सीतलवाड सरीखी स्त्रियों की चले तो सब पुरुष पौरुष हीन ही हो जायेंगे .
इस लिए आवश्यक है की हम पुरुष को पुरुष ही रहने दें .
समस्त इकतरफा कानूनों की पुनर समीक्षा होनी चाहिए .अन्यथा यह पहले से ही अपनी कायरता के लिए बदनाम देश सिफ हिन्जरों का हो जायेगा .
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