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पश्चिम के प्रभाव को बढ़ाने के लिए , हमारे बिकाऊ अखबार देश मैं इस अप्संस्क्रीति का ज़हर घोलने मैं अपनी शान समझ रहे हैं .
क्या इस देश मैं त्योहारों की कमी है ?
क्यों हम बसंत पंचमी को भुला कर यह तरह तरह के दिन मनाना चाहते हैं . बसंत ऋतू की बसंत पचमी की कहानी सब जानते हैं इस लिए मैं उसे दोहराना नहीं चाहता .
प्रेम को मैं एक अलोकिक अवस्था या आभास मानने को तैयार हूँ . पर हमारी संस्कृति काम को शालीनता से दर्शाने व संयम से जीतने की है की है . शकुंतला के दुर्भाग्य से कौन नहीं परिचित .
गरीब देश मैं बिन ब्याही लड़कियों का मा बनने की प्रतारणा से बचने के लिए उनको संयम मैं रखना ही उचित है . इसी तरह पढाई व नौकरी लगने तक लड़कों को प्रेम प्रसंगों मैं न पड़ने देना ही ठीक है . हमारे विवाह मा बाप तय करते हैं . प्रेम विवाह अपवाद के रूप मैं सहे जा सकते हैं परन्तु इस गरीब देश मैं उपयुक्त नहीं है .
असंयत प्रेम प्रदर्शन वलेंतींन दिवस का प्राकृतिक परिणिति है . यदि विवाह नहीं करना तो प्रेम न करना ही अच्छा है .
जो लड़की पार्कों मैं स्वछन्द घूमेगी किसी लड़के के साथ तो उससे बाद मैं विवाह के लिए बहूत कम लोग ही तैयार होंगे .बाद मैं मात्र पछतावा हाथ आएगा.
लड़कों के लिए भी यह स्वछंदता अच्छी नहीं है .
इसके विकराल परिणाम आते हैं जब किसी उन्चाहे विवाह मैं बांध कर जीवन भर पछताना पड़े .या पुराने प्रेम प्रसंग भविष्य के वैवाहिक जीवन मैं दुःख दें .
पश्चिम मैं प्रेम विवाह एक पद्धति है और उसकी सफलता के लिए वलेंतीं दिवस एक माध्यम है .
भारत मैं यह लड़कियों को गुमराह करने का तरीका मात्र है .
इस विषाक्त प्रयास का हमें मुथालिक सरीखा विरोध ही करना चाहिए .
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