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करवा चौथ या वलेंतिन दिवस , शकुंतला या सावित्री – स्वयं चुने

With Malice To None
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फिर वही बिके पत्रकारों व मीडिया कर्मियों के वीत राग शुरू हो गये हैं . गुलाब सुन्दर है पर किसे दें ?
किसी कॉलेज की लड़की को ?
जुते खाने के लिए या कॉफी हाउस ले जाने के लिए . कॉफी हाउस से सिनेमा और उसके बाद ?
बस या कुछ और ?
धोखे मैं मत आईये . सिनेमा से होटल के अकेले कमरे का सफर मौत की तरह दुखदायी हो सकता है . शकुंतला की तरह आपका दुष्यंत माँ बाप के सामने आप को पहचानेगा भी नहीं . आप किसी कंदवा ऋषि को शकुंतला दे मा बाप समेत किसी दूर शहर मैं रहने चली जाएँगी.
बुरे काम की शुरुआत बुरे परिणाम पर ही ले जायेगी .
यदि पत्नी हैं तो आप जानती हैं की आपका सम्मान करवा चौथ से कितना बढ़ता है. लड़के पापा से पूछते हैं की आप क्यों नहीं व्रत रख रहे ?
पापा अनुग्रहित रहते हैं . त्याग मैं बहूत अधिक ताकत होती है जो चिर स्थायी होती है .वासना क्षण भंगुर होती है .
इसलिए अब हर करवा चौथ पर अपनी लड़कियों को पारंपरिक भारतीय सभ्यता का ही पाठ पढिये .
बीस साल बाद यदि कभी रखैलों का सर्वे हुआ तो बहूत सी वलेंतिने दिवस बनाने वाली उस मैं पाई जाएँगी .
किसी जवान विधवा से पूछिए की वैधव्य क्या होता है . यदि संभव हो तो आज भी हर विधवा सावित्री बन अपने सत्यवान को लाना चाहेगी .
इस पश्चिमी संस्कृति की चमक धमक से सब को बचाएं .
अन्यथा आपके अनचाहे बचचे किसी कंदवा ऋषि के अनाथाश्रम मैं पल रहे होंगे और आप कहाँ
होंगी ये स्वयं सोच लीजिए .

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