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असम में एक और विभाजन कि तैय्यारी

With Malice To None
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असम में चल रही बोडो – बंगलादेशी मुस्लिम हिंसा तो एक स्वाभिक परिणिति है .
दस साल पहले बिहारियों के विर्रुध हिंसा जिसमें तिनसुकिया में बहूत बिहारियों को जिन्दा जला डालने कि अफवाह थी , वास्तव में बांग्लादेशियों का ही षड़यंत्र था. बिहारी सरकारी नौकरी नहीं कर रहा था . असमियों से उसका कोई झगडा नहीं था . वह तो छोटे मेहनत के काम कर पेट पलता था . वही काम बंगलादेशी मुसलमान भी करते थे . उन्होंने बिहारियों को पहले निकाला .
अब बोडो कि बारी है .
स्वंतंत्रता से पहले भी १९३७ के चुनाव में मुस्लिम लीगु ने कुछ देश द्रोहियों के साथ मिल कर सरकार बनायीं थी .
यही बंगलादेशी मुस्लमान फिर करना चाह रहे हैं
यह भी अफवाह है कि तीस्ता सीतलवाड , अरुंधती सरीखी कुछ सिर फिरी औरतें एक अभियान चलने कि तैयारी में हैं जिससे बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता मिल जाये . इसे सऊदी अरब का व्यापक समर्थन तुरंत मिल जायेगा . परोक्ष रूप से पाकिस्तानी व् बंगलादेशी आई अस आई सरीखी संस्थाएं भी परोक्ष समर्थन देंगी .
ये औरतें राष्ट्र विहीन लोगों के मानव अधिकारों के नाम पर आंदोलन शुरू करेंगी .
असम के छः राज्यों में ६०% आबादी मुसमानों कि हो गयी है .इनमें से अधिकाँश बंगलादेशी हैं .
असम का विभाजन तय है .
सरकार को असम गन परिषद के करार के अनुसार १९७० कि रोल्स पर चुनाव करना चाहिए . शेष सब सबूत बांग्लादेशियों ने भ्रष्ट अफसरों से मिल कर ले लिए हैं .
बांग्लादेशियों को सीमा पर विशेष कैंप में बंद रखना चाहिए . छूटे सांड कि तरह झोड देने से ये देश के लिए एक बड़ा खतरा हैं .

इस हिंसा में बांग्लादेशियों के विदेशी सहायकों का चिन्हां किया जाना चाहिए व् सब को जेल भेजना चाहिए .
कुछ राजनितिक स्वार्थ के लिए किये गये समझौते कि परिणिति पंजाब वाली ही होगी .
क्या हमारी पक्षाघात पीड़ित सरकार में देश बचाने का सामर्थ्य है ?

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