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वैलिन्तिन डे : फिर आ गया लालच व् वासना का महा कुम्भ

With Malice To None
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वैलिन्तिन डे : फिर आ गया लालच व् वासना का महा कुम्भ
अजित के शब्दों मैं विदेशी कंपनियों का लालच वलेंतिन डे को मरने नहीं देगा और हमारी हज़ार वर्षों की परखी संस्कृति इसे भारत मैं पनपने नहीं देगी. परन्तु यह भी तो कहा है कि
करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान
लालची व् वासना के पुजारी नित्य नए तरीके से भारतीय संस्कृति के इस मूल बीज को नष्ट करने के सतत प्रयास करते रहते हैं . खेद है कि उनके लुभाने वाले आवरण व् सतत प्रयासों से ‘ जन्म दिन’ व् एक जनवरी को नव वर्ष मनाने कि तरह, निष्क्रिय भारतीय समाज अब इस नए विषकुम्भ को भी पनपने दे रहा है.
हमारा देश अभी भी संपन्न नहीं हुआ है . हमारी संस्कृति के मूल आधारों मैं संयम , संतोष दया , परिवार व् माता पता का सम्मान ही प्रमुख है. यह सब मात्र कोरे आदर्श ही नहीं परन्तु अति व्यवहारिक प्रथाएं भी हैं . विवाह से पहले व् बाद मैं संयमित जीवन ही एक सुखी जीवन का आधार है.
हमारी संस्कृति मैं विवाह रहित प्रेम दुराचरण है . बिन ब्याही माँओं के रूप मैं लड़कियों का जीवन नष्ट हो जाता है. इसी प्रकार विवाहोपरांत प्रेम प्रसंग सुखी परिवार के विनाश को आमंत्रण है . भारतीय नारी आज भी बढती उम्र मैं घटते शारीरिक आकर्षण से चिंतित नहीं रहती. इसी प्रकार संतान के विकास मैं अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाला पिता अपने बुढापे के अकेलेपन से नहीं डरता क्योंकि उसे संतान पर भरोसा है यद्यपि पश्चिम के प्रभाव ने उस भरोसे को कम कर् दिया है .
वैलेंटाइन डे हमारे इस गरीबी मैं भी सब सुख होने की जड़ मैं विष घोलने का प्रयास है. उन्मुक्त प्रेम , लड्कियों का स्वयं वर चुनने का दंभ , अति नारी उन्मुक्तिकरण,परिवार के अवमूल्यन की प्रथम सोपान है. क्योंकि वह मात्र संतान को ही अपना मानती हैं. शारीरिक आकर्षण पर आधारित पारिवारिक रिश्ते ज्यादा दिन नहीं नहीं चलते . हमारी संस्कृति मैं जीवन एक कर्तव्य है व् सुख उस कर्तव्यपालन मैं सफलता मैं होता है. इस सब विदेशी अपसंस्कृति के चक्कर मैं हमारे पास जो सुख है उसे भी खो बैठेंगे और नए ढंग सुख के सृजन के लिए आवश्यक समृद्धि हमारे पास नहीं है. यह बहकावा नयी अति समृद्ध पीढ़ी को लुभावना लग रहा है और मीडिया कर्मी से भड़का रहे हैं .
इस लिए आईये इस वर्ष फिर हम सब नवयुवकों व् लड्क्यों को इस विश्कुम्भी से दूर रहने की आवश्यकता समझाएं.

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